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घटनाक्रमक वर्णन / भाग 4 / रमापति चौधरी

जखनहि सुनलहुँ कृष्णक रथकेँ रोकि ठाढ़ि भय कानथि
दीन दुखी कुन्ती निज दुखकें बिलखि बिलखि समुझावथि
कृष्ण कृपाकर द्रवित ह्रदय सँ तोषित कयलनि जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥41॥

जखनहि सुनलहुँ अस्त्रहीन भय कृष्ण एक दिशि रहता
तनिके अतुलबली नारायणि-सैन्य अपरदिशि लड़ता
श्रेष्ठ बूझि भौतिक बल मम सुत गछलन्हि तकरा जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥42॥

जखनहि सुनलहुँ कृष्णदेव छथि मंत्री तनिक सहायक
भीष्म द्रोण पुनि आशिष दय दय बूझथि सब विधि लायक
त्रिविध शूर मानस बल हर्षित पाओल पाण्डव जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥43॥

जखनहि सुनलहुँ तीन अतुल बल संग एक भए गेले
धनु गाण्डीव सहित कृष्णार्जुन योग परस्पर भेले
विजयी विश्वविदित महँ तीनू सुनलहुँ संजय जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥44॥

जखनहि सुनलहुँ मोहग्रस्त अति अर्जुन सबकिछु तजिकेँ
रणहुंकार दुहूँ दिशि गर्जित बैसला पाछू दबिके
सकल सृष्टि ब्रह्माण्डक पालक कृष्ण बुझाओल जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥45॥

जखनहि सुनलहुँ भीष्म हजारो मारथि नितिदिन क्षण मे
वीरबली पाण्डव के तैयो बुझि बुझि छोड़थि रण मे
अपन मृत्यु पुनि अपनहि मुख सँ रीति देखाओल जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥46॥

जखनहि सुनलहुँ कर्ण प्रतिज्ञा भीष्माधीन न लड़बे
जावत तक ओ लड़इत रहता हम नहि हुनिक संग देवे
एतवा कहि रण छोड़ि क्रुद्धभय घर गेला ओ जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥47॥

जखनहि सुनलहुँ भीष्म प्रतिज्ञा कृष्ण प्रतिज्ञा तोड़ब
देखह काल्हि हमर भुजबल सब, अस्त्रगहा केँ छोड़ब
भीष्मक विकट युद्ध लखि कृष्णो, अस्त्र उठौलन्हि जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥48॥

जखनहि सुनलहुँ टुटतहि कृष्णक व्रत लखि भीष्म पितामह
बस बस कहि नतमस्तक भेला छोड़ल युद्ध भयावह
समरनीति तहँ एहि तरहक हम सुनलहुँ संजय जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥49॥

जखनहि सुनलहुँ भीष्म मरणहित पाण्डव कयलनि दीक्षित
लाय शिखण्डी आगू रखलनि भीष्महिं कयलनि मूर्च्छित
त्रिभुवन विजयी भीष्म पितामह खसला रण मे जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥50॥