भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घटना के तौर पर / राम सेंगर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 23 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=जिरह फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !

आँखों की गोखरू
निकाल कर हथेली पर
रखे-रखे घूम, झूम,
घटना के तौर पर
कभी न कभी कूदेगा
पर्वत से क्षण का लँगूर !
जीवनगत-सच की
इस उफनाती धार में
फेंक कर स्वयँ को
अनुभूतियाँ इकट्ठी कर
गुम्बद का मौन
मुखर होना है
एक दिन ज़रूर !

बदली के गूदड़ फैलावों में
समाधान खोज रहा
जो लँगड़ी प्यास का
उस देशाचार को नकार !

जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !