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'''घटाएं बख्शीश देती हैं'''  घटाएं घटाएँ बख्शीश देती हैं
रेत और राख जी रहे लोग
घिघिया-रिरिया कर
बख्शीश लेते हैं
घटाएं घटाएँ चन्द्र-कटोरे से
भिनसारे पौ फटते ही
बूंदों बूँदों की अशर्फियांअशर्फियाँ
उड़ेल देती हैं--
चिता-आसीन जनों पर
अशर्फियों की शीतल दमक
आँखों के रास्ते
झुराई-कठुआई हड्दियों हड्डियों में
नरम जान भर देती हैं
घटा-मांएं माँएँ आशीष देती हैं
सूर्य के आग्नेयास्त्रों से
आहत बच्चों पर
दुआओं के आंसू आँसू फुहेर देती हैं--
छलछला कर, पुचकार कर
दादुरी गुनगुन में लोरियाँ भर
मीठी नीद सुला देती हैं ,
इन्द्रधनुषीय तितलियाँ भेज
उमसती-उबसती जिन्दगी ज़िन्दगी में
रंग-उमंग भर देती हैं
घटा-बालाएं बालाएँ
बूँद-केशों से
विषाद-अवसाद बुहार
शून्य हुए मन में भर देती हैं
घटाएं घटाएँ बख्शीश देती हैंघटाएं घटाएँ आशीष देती हैं.हैं।</poem>
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