भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घटाएं बख्शीश देती हैं / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''घटाएं बख्…)
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
  
 
घटाएं बख्शीश देती हैं
 
घटाएं बख्शीश देती हैं
रेट और राख जी रहे लोग  
+
रेत और राख जी रहे लोग  
 
घिघिया-रिरिया कर  
 
घिघिया-रिरिया कर  
 
बख्शीश लेते हैं  
 
बख्शीश लेते हैं  
  
घटाएं चन्द्र कटोरे से  
+
घटाएं चन्द्र-कटोरे से  
भिनासारे पौ फटते ही  
+
भिनसारे पौ फटते ही  
बूंदों की अशार्फियां
+
बूंदों की अशर्फियां
 
उड़ेल देती हैं--
 
उड़ेल देती हैं--
 
चिता-आसीन जनों पर  
 
चिता-आसीन जनों पर  
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
आँखों के रास्ते  
 
आँखों के रास्ते  
 
झुराई-कठुआई हड्दियों में  
 
झुराई-कठुआई हड्दियों में  
नारामा जान भर देती हैं  
+
नरम जान भर देती हैं  
  
 
घटा-मांएं आशीष देती हैं
 
घटा-मांएं आशीष देती हैं
पंक्ति 38: पंक्ति 38:
 
बूँद-केशों से  
 
बूँद-केशों से  
 
विषाद-अवसाद बुहार
 
विषाद-अवसाद बुहार
कोयाली कुक, झींगुरी झन्-झन् से  
+
कोयली कुक, झींगुरी झन्-झन् से  
 
आयु-मार्ग पर
 
आयु-मार्ग पर
 
थके-हारे मन पर  
 
थके-हारे मन पर  
 
चपलता उबेट देती हैं,
 
चपलता उबेट देती हैं,
कुहर वाले हाथों से  
+
कुहरे वाले हाथों से  
 
युगों की आसक्ति समेट
 
युगों की आसक्ति समेट
 
शून्य हुए मन में भर देती हैं  
 
शून्य हुए मन में भर देती हैं  

11:42, 22 जून 2010 का अवतरण

घटाएं बख्शीश देती हैं

घटाएं बख्शीश देती हैं
रेत और राख जी रहे लोग
घिघिया-रिरिया कर
बख्शीश लेते हैं

घटाएं चन्द्र-कटोरे से
भिनसारे पौ फटते ही
बूंदों की अशर्फियां
उड़ेल देती हैं--
चिता-आसीन जनों पर

अशर्फियों की शीतल दमक
आँखों के रास्ते
झुराई-कठुआई हड्दियों में
नरम जान भर देती हैं

घटा-मांएं आशीष देती हैं
सूर्य के आग्नेयास्त्रों से
आहत बच्चों पर
दुआओं के आंसू फुहेर देती हैं--
छलछला कर, पुचकार कर
दादुरी गुनगुन में लोरियाँ भर
मीठी नीद सुला देती हैं ,
इन्द्रधनुषीय तितलियाँ भेज
उमसती-उबसती जिन्दगी में
रंग-उमंग भर देती हैं

घटा-बालाएं
बूँद-केशों से
विषाद-अवसाद बुहार
कोयली कुक, झींगुरी झन्-झन् से
आयु-मार्ग पर
थके-हारे मन पर
चपलता उबेट देती हैं,
कुहरे वाले हाथों से
युगों की आसक्ति समेट
शून्य हुए मन में भर देती हैं

घटाएं बख्शीश देती हैं
घटाएं आशीष देती हैं.