Last modified on 16 सितम्बर 2014, at 11:21

घड़ा / गिरीश पंकज

मिट्टी का मैं एक घड़ा हूँ,
आता सबके काम बड़ा हूँ ।

क्या ग़रीब, क्या पैसे वाले,
सब हैं मुझको रखने वाले।
छूआछूत को दूर भगाने,
चौराहे पर रोज़ खड़ा हूँ ।

मिट्टी का मैं एक घड़ा हूँ,
आता सबके काम बड़ा हूँ ।