भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घबराए जो अजल से इंसान वो नहीं है / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिराज सिंह 'नूर' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | घबराए जो अजल से इंसान वो नहीं है। | ||
+ | लाए न जो तबाही तूफ़ान वो नहीं है। | ||
+ | इंसान की तरह जो आता नहीं है दौड़ा, | ||
+ | जो भक्त की न सुनता भगवान वो नहीं है। | ||
+ | |||
+ | करते हो छुप के तुम क्यों सब काम ज़िन्दगी के? | ||
+ | हर काम से तुम्हारे अन्जान वो नहीं है। | ||
+ | |||
+ | इल्मो-अदब की पूजा करता नहीं जो इन्सां, | ||
+ | बेबाक मेरा कहना विद्वान वो नहीं है। | ||
+ | |||
+ | अपनों के हक में जो कुछ अब तक किया है हमने, | ||
+ | कुछ भी है ‘नूर’ लेकिन अहसान वो नहीं है। | ||
</poem> | </poem> |
18:40, 29 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
घबराए जो अजल से इंसान वो नहीं है।
लाए न जो तबाही तूफ़ान वो नहीं है।
इंसान की तरह जो आता नहीं है दौड़ा,
जो भक्त की न सुनता भगवान वो नहीं है।
करते हो छुप के तुम क्यों सब काम ज़िन्दगी के?
हर काम से तुम्हारे अन्जान वो नहीं है।
इल्मो-अदब की पूजा करता नहीं जो इन्सां,
बेबाक मेरा कहना विद्वान वो नहीं है।
अपनों के हक में जो कुछ अब तक किया है हमने,
कुछ भी है ‘नूर’ लेकिन अहसान वो नहीं है।