भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घमंड / मुंशी रहमान खान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 12 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुंशी रहमान खान |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अति घमंड नाशै पुरुष चारेहु युग परमान।
मद आते जर्मन रहे कियो यूरुप संग्राम।।
कियो यूरुप संग्राम ग्राम पुर देश जराये।
मिली न एकौ इंच जिमीं धन प्राण गँवाये।।
कियो नाश सिंहासन अपना रह गए मलते हाथ मंद मति।
कहैं रहमान गुमान न करते रहते धन जन पूर सुखी अति।।