भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर-3 / अरुण देव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 10 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> बुग्ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुग्गी (भैंसागाड़ी) पर सवार अल-सुबह नदी किनारे घुटने तक झुके
ईंटो ने कहा रेत से कि आओ चलो हमारे साथ
हमारे बीच रहना
न रिसना, न भुरभुराना, बस, जकड़ लेना
जकड़े रहना
रेत पानी से बाहर आई ..
रेत के पीछे-पीछे दूर तक टपकता रहा पानी
पानी देर तक बुलाता रहा…