घर आने पर पत्नी मुझको डांटती रहती।
‘ई नै छो ऊ नै छो घर में’ भांजती रहती।।
मेरी बोली अच्छी उसको रात में लगती।
दिन होते ही घर में माथा चाटती रहती।।
नैहर जाने को हरदम बेहाल रहती है।
नैहर में गाछी-बिरछी को झांकती रहती।।
लाठी, सोटा लेकर जब तैयार हो जाते।
थर थर-थरथर-थर थर-थर थर कांपती रहती।।
लाचारी में उनको जब मैं पुनः मनाता हूँ।
तब से वह मेरी कमजोरी जानती रहती।।