Last modified on 26 फ़रवरी 2020, at 23:35

घर के हिस्से चार हुए / रामश्याम 'हसीन'

घर के हिस्से चार हुए
माँ-बापू लाचार हुए

दुख आया तो अपनों के
दर्शन तक दुश्वार हुए

मर जाना भर शेष रहा
हमपे इतने वार हुए

दुनियादारों में रहकर
हम भी दुनियादार हुए

कुछ सपने तो टूट गए
कुछ सपने साकार हुए