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घर से बाहर भेल सोहाना रे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में विवाह के लिए वर के प्रस्थान करते समय उसके वस्त्रादि की प्रशंसा की गई है।

घर सेॅ बाहर भेल सोहाना<ref>सहाना; शहाना, एक राग, जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं, इसका व्यवहार प्रायः उत्सवों तथा धर्म-संबंधी कार्यों में होता है। शाही; राजसी, बहुत बढ़िया, वह जोड़ा, जो विवाह के समय दुलहे को पहनाया जाता है</ref> रे बने<ref>दुलहा</ref>।
बने, सिर केरा मौरिया अजब रे बने॥1॥
अम्माँ परेखै<ref>देखती है, प्रेक्षण या परीक्षण</ref> तोर मुख रे बने।
बने, राम उरेहल दूनू ठोर<ref>ओष्ठ</ref> रे बने॥2॥
घर सेॅ बाहर भेल सोहाना रे बने।
बने, अँगहुँ के जोड़बा अजब रे बने॥3॥
चाची परेखै तोरो मुँह रे बने।
बने, राम उरेहल तोरऽ आँख रे बने॥4॥
घर सेॅ बाहर भेल सोहाना रे बने।
बने, डाँरहुँ के जमवा<ref>पहनावा; कपड़ा, वस्त्र</ref> अजब रे बने॥5॥
भौजी परेखै तोर मुख रे बने।
बने, राम उरेहल अनमोल रे बने॥6॥
घर सेॅ बाहर भेल सोहाना रे बने।
बने, पैरहुँ के मोजवा अजब रे बने॥7॥
बहिनी परेखै तोर मुख रे बने।
बने, राम उरेहल मोर भैया रे बने॥8॥
घर सेॅ बाहर भेल सोहाना रे बने।
बने, पैरहुँ के जूतबा अजब रे बने॥9॥
चेरिया परेखै तोर मुख रे बने।
बबुआ लागै छै सीरी राम रे बने॥10॥

शब्दार्थ
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