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घर स्वर्ग सरीखा आज छोड़ कर आयी हूँ / रंजना वर्मा

घर स्वर्ग सरीखा आज छोड़ कर आयी हूँ ।
जननी के और पिता के लिये परायी हूँ।।

यूँ तो माँ बाबा प्यार बहुत करते मुझ से
फिर भी लगता जैसे बाहर से आयी हूँ।।

ऐसे अवसर जीवन में बेहद कम आये
जब मैं खुलकर हूँ हँसी या कि मुस्कायी हूँ।।

बाबा का गुस्सा माँ की गुमसुम ख़ामोशी
लगता शायद मैं कभी न उनको भायी हूँ।।

दुनियाँ में वालिद बच्चों के रब होते हैं
मैं ही अपनी किस्मत को बाँच न पायी हूँ।।

मैया मैं अब भी हूँ वो ही चंदा तेरी
बाबा मैं तो बस सिर्फ आपकी जायी हूँ।।

माँ अब भी मेरे लिए दुआएँ करती है
सिर सहलाती जब लगे दूर से आयी हूँ।।