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घाटी-1 / तुलसी रमण

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अपने ही आप में
खोई-खोई सी घाटी...
गा रही ललना पहाड़न
लामण१ के बोल लम्बे
निर्झर की संगत में
साध रहे झिंगुर संगीत
बिखरे बेलू२ की
बंसरी के स्वर
पुचकारती भेड़ों को
रूपणू३ पहाल४ के
होठों की शुई-शुई
गूंजती हाली की हाँक
बज रही बधाई
नगारे पर
धुन-धुनाती करनाल
मंगल शहनाई का
कुकू की कुहक में
उन्मन मस्त परी सी घाटी

१. लोकगीत विशेष २. एक लोकगीत के बांसुरी बादक नायक का नाम ३. लोक प्रसिद्ध पशुपालक का नाम ४. पशुपालक