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घास मुस्काई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

271
बाहें मरोड़े
दबंग बवण्डर
डालियाँ तोड़े ।
272
घास मुस्काई-
तूफ़ान थके- हारे
पार न पाए।
273
उजेरा करो
तुम भोर -किरन
मन-गगन ।
274
सपने मिले
तुम जैसे कभी न
अपने मिले।
275
आँधियाँ मिलीं
हर मोड़ पे तुम्हें
तुम न झुकी।
276
काँटे ही काँटे
बोते रहे अपने
तुम न रुके।
277
टूटा जो मन
दर्द उठा निर्मम
आँखें भी नम।
278
पोंछो नयन
अपने भी कुछ हैं
मोती से प्यारे ।
279
दूर ही सही
किन्तु पास मन के
वे ही तुम्हारे ।
280
झुलसा नभ
उड़ती चिंगारियाँ
व्याकुल धरा ।
281
बरसी आग
सूखे कूप बावड़ी
प्यासे , तरसे ।
282
झुलसे गाछ
गर्म राख- सी धूल
पंछी तड़पें ।
283
क्रुद्ध मार्तण्ड
चोट खाए साँप-सा
क्रूर, प्रचण्ड ।
284
लू की लपटें
चीता बन झपटें
जीवन लीलें ।
285
भभका वन
हर चिड़िया प्यासी
प्राणों के लाले ।