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घुंजु मुंहं में विझी, को नकु मोड़े! / अर्जुन हासिद

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घुंजु मुंहं में विझी, को नकु मोड़े!
किअं बि हरको थो पंहिंजी ॻाल्हि चवे!

फ़िक्र ऐं सोच ज़हिड़ा लफ़्ज हुआ,
कमि त हर कंहिं अञा बि आंदा थे!

भलि हुजे को कसूरवार मगर,
कोड़ छिड़िॿे नथो सघे कंहिं खे!

ख़्वाब विफलण लॻनि था हिन हुन जा,
इन करे सभिनी जी थी निंड फिटे!

तुंहिंजे साम्हूं मां डोड़ पाईंदुसि,
भलि मूंखे किथे पहुचणो कोन्हे!

पंहिंजी बकवास जो कसम खाई,
जो चवां थो रुॻो सो कूड़ आहे!

केॾी कूड़नि जी कारपति हासिद,
सवली कान्हे, को ॾांउ थो घुरिजे!