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घुटन है पल-पल / सैयद शहरोज़ क़मर

घुटन है पल-पल
नेत्र हुए जल-जल

बन्धु, बस करो, बस
देश हुआ दल-दल

इंसाँ हो गर तुम
मत करो छल, छल

विदेशी गए, भाषा
पर नहीं, टल, टल

अब इक सपना है
ढाके का मल-मल

थाली पर इक हुए
बिखरेंगे कल, कल

रोटी हुई चाँद
लोग हुए कल, कल

15.04.97