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घुटन / संजीव ठाकुर

मन करता है भाग पड़ूँ--
तुम्हारे पास आते ही
एक बेबर्दाश्त घुटन होती है
तुम्हारी परिधि में

यह जानते हुए भी--
नक्कार खाने में
तूती की आवाज़ है
मेरा प्यार
तेरे पास आता हूँ
और
अजनबी गंध
न सूँघ पाने की मजबूरी से
नौ-दो ग्यारह हो जाता हूँ।