Last modified on 2 जनवरी 2017, at 11:47

घुट-घुट हो मरना तो प्यार करे कोई / डी. एम. मिश्र

घुट-घुट हो मरना तो प्यार करे कोई
रो-रो दामन में अंगार भरे कोई।

उलझन में दिवस रात करवट में बीते
मौत नहीं आये यह सोच मरे कोई।

बिखर गये सपने कुछ यूँ चली हवाएँ
शीशे तक पिघल गये नीर ढरे कोई।

फूलों के ओठों पे काँप रही शबनम
चिंता की ज्वाला में प्राण जरे कोई।

चोरों के हाथों मे न्याय के महकमे
जुर्म करे कोई तो दण्ड भरे कोई।