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घुमक्कड़ सावन / निर्देश निधि

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चाची के ओसारे की
लाल खपरैलों पर, सुरमई छानों पर
फिसल-फिसल जाता है
नटखट सावन
भीतर वाले कोठे की रिसकर कच्ची छत से
मिलने चला आता है मिलनसार सावन
पानियों के बदले में, आँगन की गोबर फिरी परतें
साथ ले जाता है बिसाती सावन
दुवारी के आले में छिपकर बैठ जाता है
चुर में पड़ी कुट्टियों को तरल कर जाता है
बिन फागुन के ही डँगरों से होली खेल जाता है
हुड़ दंगा सावन
बहते हुए पानियों पर मुन्नी और गुड्डू की
किश्तियाँ काग़ज़ की, ख़ूब घुमाता है
दरिया बना सावन
प्रेमी बन धरतियों के अंग लग जाता है
धान की अलवाई फसलों की प्यास बुझाकर
अपनी पिटारी से तीज का गीत उगाता है
गीतकार सावन
ब्याहताओं को पीहर की राह दिखाकर
तरुणियों के गालों पर बिखर–बिखर जाता है
गुलाबी अबीर बन मनचला सावन
सुरमई चादर बन साफ़ सुथरे अंबर पर रोज़ पसर जाता है
उतर कर मेरे गाँव में
घर, घेर, चबूतरे, आँगन
सबको गारा–गारा कर जाता है
गीला-गीला सावन
चाँद को छिपाकर पसीजी हथेलियों में
चकोर की पीड़ा का कारण बन जाता है
बेदर्दी सावन
ओक में भरकर दिपदिपाते सूरज को
गटा-गट जाता है, प्यासा–प्यासा सावन
थिरकते मयूरों के पंखों से छिटककर
बनकर के इंद्रधनुष क्षितिज के मुहाने पर
खिचकर बैठ जाता है सतरंगी सावन
सूखी–सूखी धरतियों के रंगहीन फ़र्शों पर
लगा बारिशों की खड्डियाँ
हल्के हरे, गाढ़े हरे गलीचे बुन जाता है
जुलाहा सावन।
जोहड़ के पानियों में कूद–कूद जाता है
युगों के समंदर में छपा–छप करता
बरस दर बरस यूं ही
मेरे गाँव चला आता है
घुड़घुड़ाता घड़घड़ाता, घुमक्कड़ सावन।