भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घूमे है गलिओं कूचों में बेरोक ऐ हवा / नीना कुमार
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:36, 14 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> घ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
घूमे है गलिओं कूचों में बेरोक ऐ हवा
ज़रा उस दीवार-ओ-दर का भी हाल तो बता
जा फिर से पलट दे तू वो पन्ने किताब के
जहाँ जा ना पाऊँ मैं वहाँ जाने की कर खता
रचनाकाल: 14 अगस्त 2013