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घोड़ा - 2 / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

घोड़ा आता, घोड़ा आता,
बड़ी शान से पाँव जमाता।
कभी कहरवा कभी दादरा,
सधी ताल पर पाँव उठाता।
वीरों की यह बने सवारी,
बच्चों के मन को ललचाता।
भूरा, नीला, चितकबरा-सा,
घोड़ा सबके मन को भाता।