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घोड़े ही घोड़े हैं / कुमार रवींद्र

घोड़े ही घोड़े हैं
दौड़ रहे बेलगाम घोड़े हैं सड़कों पर

घोड़े ये आदिम हैं
सदियों से
ऐसे-ही दौड़ रहे
थकें नहीं थमें नहीं
यह कैसा पागलपन
कौन कहे

वैसे भी खतरे थोड़े हैं सड़कों पर
घोड़े ही घोड़े हैं

बिजली है पांवों में
बादल-से
उड़ते उनके अयाल
दूर कहीं झरने में
ऐड़ लगा
जल गाता है ख़याल

वही राग झरनों ने मोड़े हैं सड़कों पर
घोड़े ही घोड़े हैं।

कथा एक -
कहते हैं किरणों ने
रूप धरा घोड़ों का
बार-बार
मिलन हुआ था
उनके जोड़ों का

वही रूप किरणों ने छोड़े हैं सड़कों पर
घोड़े ही घोड़े हैं।