घोर अमा जब चित्त ग्रसे, गुरु दीप बने सत पंथ दिखावै।
सत्य मृषा द्वय में सच को, चुनना किस भाँति सतर्क करावै।
शिष्य अबोध गिरे तम में, उसको तब बोध प्रवीण बनावै
सूर्य समान जले नित ही, निज कै कछु हानि न लाभ गनावै
घोर अमा जब चित्त ग्रसे, गुरु दीप बने सत पंथ दिखावै।
सत्य मृषा द्वय में सच को, चुनना किस भाँति सतर्क करावै।
शिष्य अबोध गिरे तम में, उसको तब बोध प्रवीण बनावै
सूर्य समान जले नित ही, निज कै कछु हानि न लाभ गनावै