भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चंदा मामा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे प्यारे चंदा मामा!
जब रातों में आते हो।
झिलमिल तारों के संग मिलकर
मंद मंद मुस्काते हो॥

सदा खेलते आँख मिचौनी,
हर दिन रूप बदलते हो।
और कभी गायब हो जाते,
हमको कैसा छलते हो॥

तुमसे अपना रिश्ता कैसा
सब उलझन में रहते हैं।
दादा-दादी,मम्मी-पापा
सब ही मामा कहते हैं।

तुम्हें देखता हूँ रजनी भर,
भला कहाँ सो पाता हूँ।
शीतलता के परम-पुंज!
मैं सपनों में खो जाता हूँ॥