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चंद शब्दों से नहीं बनती है कविता / शाहिद अख़्तर

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महज चंद शब्‍दों और चंद बिंबों से
नहीं बनती है कविता
कविता कोई भात नहीं
कविता कोई सब्‍ज़ी नहीं
कि शब्‍दों को धोया
बिंबों का मसाला डाला
और चढ़ा दिया भावनाओं के
चूल्‍हे की आँच पर।

कविता भिन्‍न है
बहुत भिन्‍न है
आप अगर चाहते हैं
उसे किसी फार्मूले में बाँधना
तो कोई ठीक नहीं कि वह तोड़ दे बंधन
कोई हैरत नहीं कि आप कहना चाहें कुछ
और वह कह दे कुछ और बातें

आख़िर जब महंगाई आसमान पर हो
और शहर पर भूख का शासन
और हर तरफ मचा हो हाहाकार
शब्‍द और कविता
किसी अभिनेत्री के नितंबों का
राग तो अलाप नहीं सकती
उनके कमनीय कुचों का
गुणगान तो नहीं कर सकती
महज चंद शब्‍दों और चंद बिंबों से...