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चइत के छन्द / अशोक द्विवेदी

कोइलरि कूहे अधिरतिया आ बैरी
चइत कुहुँकावे.
रहि रहि पाछिल बतिया इ बैरी
चइत उसुकावे.

कुरुई-भरल-रस-महुवा, निझाइल
कसक-कचोटत मन मेहराइल
उपरा से कतना सँसतिया, आ बैरी
चइत कुहुँकावे

फगुवा गइल दिन कटिया के आइल
अइले ना उहो, खरिहनवा छिलाइल
कब मिली उहाँ फुरसतिया, इ बैरी
चइत कुहुँकावे

मुसवा-बिलइया, चुहनिया अँगनवा
खड़के जे कुछ कही, चिहुँकेला मनवाँ
धक् धक् धड़केले छतिया, आ बैरी
चइत कुहुँकावे

उनुका नोकरिया क सुख बाटे एतना
संग कहाँ रहिहें, देखलको बा सपना
हमनी क इहे किसमतिया, इ बैरी
चइत कुहुँकावे