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चकबंदी अब कैरी द्यो / अनूप सिंह रावत

कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।
गणेश 'गरीब' जी की, बात जरासी सूणी ल्यो।।
हूणु पलायन यख बिटि, चकबंदी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

ऐंसु न भ्वाला साल, सूणी-सूणी थकी ग्यावा।
जनमानस की बात थैं, टक्क लगै की सूणी ल्यावा।।
होरी जगह ह्वेगे चकबंदी, यख भी अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

क्वी यख क्वी वख, क्वी ये छाल क्वी वै छाल।
इनै उनै जांण मा ही, सरया गात जलै याल।।
एक ही समणी सभ्या पुंगडा, हमरा अब कैरी द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

चकबंदी ह्वे जाली त, बांजा पुंगडा चलदा होला।
होलु खूब अनाज यख, भैर किलै छोड़ी जौंला।।
द्वी चार ख़ुशी का फूल, हमरा जीवन मा ढोली द्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।

नेतागिरी छोड़ी की आज, जरा मनख्यात रैखि ल्यावा।
तुम्हरा ही भै-बंधु हम, बिरोधी नी छावा।।
गरीब क्रांति आंदोलन की बात, झटपट सूणी ल्यो।
कुर्सी मा बैठ्या भैजी, चकबंदी अब कैरी द्यो।।