Last modified on 13 मई 2014, at 22:43

चक्रान्त शिला - 23 / अज्ञेय

व्यथा सब की, निविडतम एकान्त मेरा।
कलुष सब का स्वेच्छया आहूत;
सद्यधौत अन्तःपूत बलि मेरी।
ध्वान्त इस अनसुलझ संसृति के
सकल दौर्बल्य का, शक्ति तेरे तीक्ष्णतम, निर्मम, अमोघ
प्रकाश-सायक की।