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चटसार / पतझड़ / श्रीउमेश

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लोअर प्राइमरी इसकूलें, कहलाबै छै चटसार यहाँ।
धीया-पूता रोज पढ़ै छै भोरे चरकाँ चार जहाँ॥
भौजू गुरुजी निसुहारी के साटोॅ एक मँगाबै छै।
मौगली-बान्ह चढ़ाबै छै, बुतरू सब केॅ धमकाबै छै॥
गरहां, ड्योढ़ा, हुट्ठा, खोढ़ा रोज सिहारै छेॅ।
इसकूली सें जे भागै छै, ओकरा बड्डी मारै छै॥
चिकरी-चिकरी बालै छै, छोड़ा-छौड़ी सब मू बिचकाय।
”बोलो जै गनपत-कही जी भाय-विद्या दे सरसत्ती माय॥
आज सनिचरा पुजलोॅ जैत, गोवरोॅ सें निपतै इसकूल।
चावर-गूड़-पैसा लानै में, कोय चटियां नै करतै भूल।’
पूजा करतै स्त्री गनेस के, अस्तुति गैतै जे छै याद।
भौजू गुरु समेटलक पैसा, चटिया केॅ मिललै परसाद॥