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चढ़त उमिरिया देहियाँ अस चिकनाय / हरिराम द्विवेदी

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चढ़त उमिरिया देहियाँ अस चिकनाय,
टपरै नाहिं पुतरिया मन बिछलाय
बड़हनि अँखिया पातर काजर-रेख,
पिछउँड़ होइ अनियासै देहलिन देख

चितवनियाँ कुछ अइसन गइल सहेज
पानी-पानी भइलैं काठ-करेज
कब्बों तनै धनुहिया भरल कुरेध
बिना कसूरै देत हिया के बेध

जब अँखियन कै हँसी अधर तक आय
करै चुलबुली मन मसोसि रह जाय
तनिकै मुसुकिनियाँ गुड़ नियर मिठास
बेरियाँ-बेरियाँ बरबस लगै पियास

जिउ कै जरनि सुघर ई भइलीं आन
नाचै चढ़ि के आँखी साँझ-बिहान
कुछ अइसन हो गयल कि कहि नहिं जाय
अँखियन केरि ओहँइया गइल हेराय

गुदगर देहियाँ अस मदमाती चाल
छुवति चरनियाँ भुँइयाँ होय निहाल
लखी के ओनकर साँचै ढारल देह
उपजै, बाढै, पनपै बहुत सनेह

बेरि-बेरि तिकवै कै जियरा होय
इहो लगे डर जानि न पावै कोय
करीं हवाले ओनके अपने आप
सहि नहिं जाय तनिक दूरी कै ताप