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चढी घूँट भर ही, क़दम डगमगाया / गुलाब खंडेलवाल


चढी घूँट भर ही, क़दम डगमगाया
ये सच है हमें अब भी पीना न आया

कहाँ से ये प्यार आया आँखों के अन्दर!
न तुमने बुलाया, न हमने बुलाया

अँधेरा था दिल में, अँधेरा था घर में
कोई रूप की चाँदनी लेके आया

हरेक बात में कुछ इशारा था उनका
ये नादान दिल कुछ समझ ही न पाया

गुलाब! आज होने को सब कुछ वही है
मगर उठ गया है बहारों का साया