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चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे / प्रतापबाला

चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे।
कंचन खंभ लगे मणिमानिक रेसम की रंग डोरें॥
उमड़ि घुमड़ि घन बरसत चहुँदिसि नदियाँ लेत हिलोरें।
हरी-हरी भूमि लता लपटाई बोलत कोकिल मोरें॥
बाजत बीन पखावज बंशी गान होते चहुँ ओरें।
जामसुता छबि निरखि अनोखी वारूँ काम किरोरें॥