चन्द को चकोर देखै निसि दिन करै लेखै,
चन्द बिन दिन-दिन लागत अन्धियारी है ।
आलम सुकवि कहै भले फल हेत गहे,
काँटे-सी कटीली बेलि ऐसी प्रीति प्यारी है ।
कारो कान्ह कहत गँवार ऐसी लागत है,
मेरे वाकी श्यामताई अति ही उजारी है ।
मन की अटक तहाँ रूप को बिचार कैसो,
रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।