भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चमक पड़ी चोली / राजकिशोर सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पफगुनाहट के हिलोरे में
हट गयी चुनरी
दिऽ गयी चोली
समझो आ गयी होली
पेड़ोें की टहनी पर
छिप गयी कोयल
सुन पड़ी बोली
समझो आ गयी होली
सड़कों के चौराहे पर
जम गये लड़के
बन गयी टोली
समझो आ गयी होली
घरों के कोने से
महक पड़े पुए
चमक पड़े रंगों की झोली
समझो आ गयी होली
दलानों के झरोऽे में
चढ़ गयी भंग
बनने लगे उसकी गोली
समझो आ गयी होली।