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चमत्कार / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद

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क्यों ! कौन चमत्कार को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है ?
जहाँ तक मेरी बात है, मैं तो चमत्कारों के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानता,
चाहे मैं मैनहैटन की सड़कों पर चलता हूँ,
या अपनी दृष्टि घरों की छतों पर से आकाश की ओर दौड़ाता हूँ,
या समुद्र-तट की सीध में पानी के ठीक किनारे नँगे पाँव डालकर चलता हूँ,
या जँगलों में वृक्षों के नीचे खड़ा रहता हूँ,
या खाने की मेज़ पर और लोगों के साथ बैठता हूँ,
या अपने सामने कार से जाते अपरिचितों को देखता हूँ,
या ग्रीष्म के पूर्वाह्न में मधुछत्तों के चारों ओर व्यस्त मधुमक्खियों,
या खेतों में चरते पशुओं का,
या पक्षियों या हवा में कीटों की आश्चर्यमयता का
या सूर्यास्त की आश्चर्यमयता
या इतनी शान्ति और दीप्ति से चमकते तारों का,
या वसन्त के नवचन्द्र की अद्भुत्त
कोमल क्षीण वक्ररेखा का अवलोकन करता हूँ, अन्य सब के साथ ये भी,
प्रत्येक और सभी मेरे लिए चमत्कार हैं,
सम्पूर्ण परस्पर सम्बन्धित, किन्तु प्रत्येक
अलग और ठीक अपनी-अपनी जगह ।
मेरे लिए प्रकाश और अन्धकार का हर घन्टा चमत्कार है,
आकाश का प्रत्येक घन इँच चमत्कार है,
पृथ्वी की सतह का प्रत्येक वर्ग गज चमत्कार है,
भीतर का प्रत्येक फुट इसी से भरा है,
मेरे लिए सागर एक सतत चमत्कार है,
मछलियाँ जो तैरती हैं — चट्टानें — लहरों की गति — लोगों से भरे जहाज़,
इससे विलक्षण चमत्कार कहाँ है?

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
             Walt Whitman
                 Miracles

Why! who makes much of a miracle?
As to me, I know of nothing else but miracles,
Whether I walk the streets of Manhattan,
Or dart my sight over the roofs of houses toward the sky,
Or wade with naked feet along the beach, just in the
edge of the water,
Or stand under trees in the woods,
Or talk by day with any one I love — or sleep in the
bed at night with any one I love,
Or sit at the table at dinner with my mother,
Or look at strangers opposite me riding in the car,
Or watch honey-bees busy around the hive, of a sum-
mer forenoon,
Or animals feeding in the fields,
Or birds — or the wonderfulness of insects in the air,
Or the wonderfulness of the sun-down — or of stars
shining so quiet and bright,
Or the exquisite, delicate, thin curve of the new-moon in spring;
Or whether I go among those I like best, and that
like me best — mechanics, boatmen, farmers,
Or among the savans — or to the soiree — or to the opera,
Or stand a long while looking at the movements of machinery,
Or behold children at their sports,
Or the admirable sight of the perfect old man, or the
perfect old woman,
Or the sick in hospitals, or the dead carried to burial,
Or my own eyes and figure in the glass;
These, with the rest, one and all, are to me miracles,
The whole referring — yet each distinct and in its place.

To me, every hour of the light and dark is a miracle,
Every inch of space is a miracle,
Every square yard of the surface of the earth is spread
with the same,
Every cubic foot of the interior swarms with the same;
Every spear of grass — the frames, limbs, organs, of
men and women, and all that concerns them,
All these to me are unspeakably perfect miracles.

5To me the sea is a continual miracle;
The fishes that swim — the rocks — the motion of the
waves — the ships, with men in them,
What stranger miracles are there?