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|रचनाकार=अज्ञात
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{{KKLokGeetBhaashaSoochi|भाषा=राजस्थानीKKCatRajasthaniRachna}}<poem>
चरखो तो ले ल्यूँ, भँवरजी, रांगलो जी
 
हाँ जी ढोला, पीढ़ा लाल गुलाल
 
तकवो तो ले ल्यूँ जी, भँवरजी, बीजलसार को जी
 
ओ जी म्हारी जोड़ी रा भरतार
 
पूणी मंगा ल्यूँ जी क बीकानेर की जी
 
म्होरे म्होरे री कातूँ, भँवर जी, कूकड़ी जी
 
हाँ जी ढोला, रोक रुपइये रो तार
 
म्हे कातूँ थे बैठा विणज ल्यो जी
 
ओ जी म्हारी लल नणद रा ओ वीर
 
अब घर आओ प्यारी ने पलक न आवड़े जी
 
गोरी री कमाई खासी राँडिया रे
 
हाँ ए गोरी, कै गांधी कै मणियार
 
म्हे छाँ बेटा साहूकार रा जी
 
ए जी म्हारी घणीए प्यारी नार
 
गोरी री कमाई सूँ पूरा न पड़े जी
'''भावार्थ'''
'''भावार्थ'''<br><br> --'एक रंगीला चरखा ले लूंगी मैं, ओ प्रियतम ! अजी ओ ढोला, एक लाल-गुलाल पीढ़ा ले लूंगी । उत्तम, पक्के लोहे का, ओ प्रियतम ! मैं तकला ले लूंगी । अजी ओ, मेरी जोड़ी के भरतार ! बीकानेर से पूनियाँ मंगवा लूंगी,  एक-एक मोहर के दाम से कातूंगी एक-एक कूकड़ी (पूनी) । अजी ओ ढोला, एक-एक रुपए का होगा एक-एक  धागा । मैं कातूंगी और तुम बैठे इसका व्यवसाय करना । अजी ओ, मेरी लाल ननद के भाई! जल्दी घर आओ, तुम्हारी प्यारी को अब पल भर भी चैन नहीं ।' --'स्त्री की कमाई खाएगा कोई नामर्द, या कोई इत्र बेचने वाला, या कोई मनिहार, ओ रूपवती ! मैं तो साहूकार
--'स्त्री की कमाई खाएगा कोई नामर्द, या कोई इत्र बेचने वाला, या कोई मनिहार, ओ रूपवती ! मैं तो साहूकार का बेटा हूँ । हे मेरी बहुत प्यारी नारी ! पत्नी की कमाई से काम नहीं चलता ।'</poem>