चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी।
कलयुग जीव उद्धारण कारण, काटत पाप अब धार पेनी॥१॥
प्राणपति प्राणसुत आये भक्तन हित, सकल सुख की तुम हो जु श्रेनी।
गोविन्द प्रभु बिना रहत नहिं एक छिनु, अतिहि आतुर चंचल जु नैनी॥२॥
चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी।
कलयुग जीव उद्धारण कारण, काटत पाप अब धार पेनी॥१॥
प्राणपति प्राणसुत आये भक्तन हित, सकल सुख की तुम हो जु श्रेनी।
गोविन्द प्रभु बिना रहत नहिं एक छिनु, अतिहि आतुर चंचल जु नैनी॥२॥