Last modified on 15 अगस्त 2020, at 11:32

चरैवेति / त्रिलोचन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 15 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |अनुवादक= |संग्रह=तुम्हे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उड़ चल; उड़ चल; मेरे पंछी, तेरा दूर बसेरा

          दिन उड़ता निज पर फैलाए
          बदल रहा जग बिना बताए
दिन के संग चलाचल, पीछे आता घोर अन्धेरा

          सांस न लेने की बेला है
          प्रलय-पर्व का यह मेला है
फिर, तेरा वह देश, जहाँ पर शेष न साँझ-सवेरा