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चला गया दिन / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन
बीत गए, तुम्हें नहीं देखा;
लगा जैसे बीत गया है दिन

भूतों से भिक्षा में माँग लाया
ढेला
उसी से बना रहा हूँ माटी का घर

इस उम्र में और
कुछ भी नहीं रहा खोने को

छठवें दिन
तुम आकर बैठोगी उस घर में
कह उठोगी —

कहाँ, देखूँ ज़रा ?
पढ़ रही हूँ
तुम्हारी नई कविता ।

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी