Last modified on 5 सितम्बर 2019, at 17:53

चला गया दिन / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन
बीत गए, तुम्हें नहीं देखा;
लगा जैसे बीत गया है दिन

भूतों से भिक्षा में माँग लाया
ढेला
उसी से बना रहा हूँ माटी का घर

इस उम्र में और
कुछ भी नहीं रहा खोने को

छठवें दिन
तुम आकर बैठोगी उस घर में
कह उठोगी —

कहाँ, देखूँ ज़रा ?
पढ़ रही हूँ
तुम्हारी नई कविता ।

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी