भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चले मेरी बाइसिकिल / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:27, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टुन-टुन-टुन, टुन-टुन-टुन,
चले मेरी बाइसिकिल।

सर-सर-सर, सर-सर-सर,
गलियों में भागे।
फर-फर-फर, फर-फर-फर
सौ चक्कर काटे।

मोड़ों पर झटपट से
अपना मुँह मोड़े।
बिना रुके मीलों तक
पहियों पर दौड़े।

मोटर की तरह धुआँ
कभी नहीं फैलाए।
डीजल, पेट्रोल छोड़
सिर्फ हवा खाए।

टुन-टुन-टुन, टुन-टुन-टुन,
चले मेरी बाइसिकिल।