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चलो कि मंजिल दूर नहीं / बल्ली सिंह चीमा

चलो कि मंज़िल दूर नहीं, चलो कि मंज़िल दूर नहीं
आगे बढ़कर पीछे हटना वीरों का दस्तूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ...

चिड़ियों की चूँ-चूँ को देखो जीवन संगीत सुनाती
कलकल करती नदिया धारा चलने का अंदाज़ बताती
ज़िस्म तरोताज़ा हैं अपने कोई थकन से चूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ..

बनते-बनते बात बनेगी बूँद-बूँद सागर होगा
रोटी कपड़ा सब पाएँगे सबका सुंदर घर होगा
आशाओं का ज़ख़्मी चेहरा इतना भी बेनूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं....

हक़ मांगेंगे लड़ कर लेंगे मिल जाएगा उत्तराखंड
पहले यह भी सोचना होगा कैसा होगा उत्तराखंड
हर सीने में आग दबी है चेहरा भी मज़बूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं ..

पथरीली राहें हैं साथी संभल-संभल चलना होगा
काली रात ढलेगी एक दिन सूरज को उगना होगा
राहें कहती हैं राही से आ जा मंज़िल दूर नहीं
चलो कि मंज़िल दूर नहीं .. चलो कि मंज़िल दूर नहीं