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चलो मिल के गायें / उर्मिल सत्यभूषण

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चलो मिल के गायें
दो आंसू बहायें
गले मिल के रोयें
ज़रा खुद में खोयें
कि ग़म भूल जायें
चलो मिलके रोये
हां छेड़े तराना
वो नग़मा पुराना
हमीं डूब जायें
कि ग़म भूल जायें
कंधों पे सर हो
नयन तर ब तर हो
ये लब मुस्कुरायें
चलो मिल के गायें
अकेले हैं हम-तुम
मगर क्यों है गुम-सुम
चलो खिलखिलायें
दो आंसू बहायें।