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चलो सनम इस दुनिया को अब और ख़ूबसूरत बना दें / शमशाद इलाही अंसारी

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चलो सनम इस दुनिया को अब और ख़ूबसूरत बना दें,
जब तक ये बने, मैं तुझे कहीं छुपा दूँ तू मुझे कहीं छुपा दे।

न दरवाज़े हों जिसमें, न दर, न हो कोई भी दीवार,
जहाँ तेरे ग़ुनाह मैं गिरा दूँ, मेरे ग़ुनाह तू गिरा दे।

सदियों से नौचा है शेखों-ज़ाहिद ने इस अदना से इंसान को,
इसके जिस्म पे थोड़ा़-सा गोश्त मैं लगा दूँ, थोडा़-सा तू लगा दे।

"शम्स" अब सब की ज़रुरत बन गया है आब-ए-हयात
इस दुनिया को थोडा़ सा मैं हिला दूँ, थोडा़ सा तू हिला दे।


रचनाकाल: 16.09.2002