भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चल रे मन्ना / अंजनी कुमार सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चल रे मन्ना गुल्ली खेलै दल्लो के पिछुवाड़ी में
नयका-नयका पोक बनल छै-फिर तलुआ के बाड़ी में
सुगना के भी साथ में लीहें ऊ होतौ पन्ना में
ओकरा झुट्ठो कहियें बेटा चल इस्कुल सरकारी में
चल रे मन्ना गुल्ली खेलै दल्लो के पिछुवाड़ी में।

ओकरा घुच्चुक बड़-बढ़िया छै सर-सर-सर-सर पीलै छै
नीस बला के मोॅन तरे-तर मार खुशी के हीलै छै
हमहुँ एगो टीगा पैलौ कुतबा के गोरधारी में
चल रे मन्ना गुल्ली खेलै दल्लो के पिछवाड़ी में।

के मिट्टी के दोब्बअ होतै टौस करी केॅ देखी लेबै
जे पीछू सें ऐतै ओकर नम्मर सबसें फिस्सी देबै
पोक-तोक में मोन नै लगतै उतरिस खेलबै झाड़ी में
चल रे मन्ना गुल्ली खेलै दल्लो के पिछवाड़ी में।