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'''१.'''
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सिया डाले राम गले जय माला, सिया डाले राम गले जय माला।
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रामचन्द्र दुलहा बनि आए। दुलहा बनि आए, दुलहा बनि आए।
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आरे लछुमन होऽऽ, बने सोहबाला, सिया डाले...
  
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सिया डाले राम गले जय माला, सिया डाले राम गले जय माला।<br>
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केदली बन भौंरा रस माते, के दली बन भौंरा रस माते।
रामचन्द्र दुलहा बनि आए। दुलहा बनि आए, दुलहा बनि आए।<br>
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केकरा गृहे जन्मे सिया जानकी, अरे केकरा हो,
आरे लछुमन होऽऽ, बने सोहबाला, सिया डाले...<br><br>
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केकरा गृह में पारवती, केदली बन भौंरा रस माते।
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केइएँ विवाही सिया जानकी,
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केइएँ विवाही पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।
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राजा जनक गृहे सिया जानकी, अरे राजा होऽऽ,
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राजा हिवंचल के पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।
  
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केदली बन भौंरा रस माते, के दली बन भौंरा रस माते।<br>
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वर दऽ हो भवानी, इहे मगन हम मांगी ले।
केकरा गृहे जन्मे सिया जानकी, अरे केकरा हो,<br>
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रामचन्द्र ऐसो कंत, लखन ऐसो देवर ज्ञानी, इहे मंगन...
केकरा गृह में पारवती, केदली बन भौंरा रस माते। <br>
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राजा दसरथ ऐसो सुसर, सास कोसिल्या रानी, इहे मंगन...
केइएँ विवाही सिया जानकी,<br>
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राजा अयोध्या सरजुग जल निर्मल पानी, इहे मंगन...
केइएँ विवाही पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।<br>
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राजा जनक गृहे सिया जानकी, अरे राजा होऽऽ,<br>
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राजा हिवंचल के पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।<br><br>
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'''३.'''<br>
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वर दऽ हो भवानी, इहे मगन हम मांगी ले।<br>
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तनि भरि दऽ गगरियाऽ हो श्याम कहे बृजनारि।
रामचन्द्र ऐसो कंत, लखन ऐसो देवर ज्ञानी, इहे मंगन...<br>
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हमसे चढ़ा जात नाहि मोहन, जमुना ऊँच अरारी,
राजा दसरथ ऐसो सुसर, सास कोसिल्या रानी, इहे मंगन...<br>
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पाव धरत हमरो जीउ डरऽवत,  
राजा अयोध्या सरजुग जल निर्मल पानी, इहे मंगन...<br><br>
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दूजे पाव में पायल भारी, कहे बृजनारि।
 
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'''४.'''<br>
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तनि भरि दऽ गगरियाऽ हो श्याम कहे बृजनारि।<br>
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हमसे चढ़ा जात नाहि मोहन, जमुना ऊँच अरारी,<br>
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पाव धरत हमरो जीउ डरऽवत, <br>
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दूजे पाव में पायल भारी, कहे बृजनारि।<br><br>
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13:48, 21 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण


   ♦   रचनाकार: अज्ञात

१.
सिया डाले राम गले जय माला, सिया डाले राम गले जय माला।
रामचन्द्र दुलहा बनि आए। दुलहा बनि आए, दुलहा बनि आए।
आरे लछुमन होऽऽ, बने सोहबाला, सिया डाले...

२.
केदली बन भौंरा रस माते, के दली बन भौंरा रस माते।
केकरा गृहे जन्मे सिया जानकी, अरे केकरा हो,
केकरा गृह में पारवती, केदली बन भौंरा रस माते।
केइएँ विवाही सिया जानकी,
केइएँ विवाही पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।
राजा जनक गृहे सिया जानकी, अरे राजा होऽऽ,
राजा हिवंचल के पारबती, केदली बन भौंरा रस माते।

३.
वर दऽ हो भवानी, इहे मगन हम मांगी ले।
रामचन्द्र ऐसो कंत, लखन ऐसो देवर ज्ञानी, इहे मंगन...
राजा दसरथ ऐसो सुसर, सास कोसिल्या रानी, इहे मंगन...
राजा अयोध्या सरजुग जल निर्मल पानी, इहे मंगन...

४.
तनि भरि दऽ गगरियाऽ हो श्याम कहे बृजनारि।
हमसे चढ़ा जात नाहि मोहन, जमुना ऊँच अरारी,
पाव धरत हमरो जीउ डरऽवत,
दूजे पाव में पायल भारी, कहे बृजनारि।