Last modified on 5 अप्रैल 2011, at 02:09

चाँदनी / उदयप्रताप सिंह

जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
            मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी ।
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
            खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी ।
सुख में तो सभी मीत होते किन्तु दुख में भी
            मेरे साथ साथ गीत गाती रही चाँदनी ।
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
            और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी ।