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"चाँद अकेला है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
 
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
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आँसू पोंछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
  
 
'''उलझन में हरदम जीवन  छूटा मेला है।'''
 
'''उलझन में हरदम जीवन  छूटा मेला है।'''
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'''पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।'''
 
'''पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।'''
 
  
  
  
 
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10:39, 13 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण


सूने अम्बर में मेरा चाँद अकेला है।
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।

आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोंछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के

उलझन में हरदम जीवन छूटा मेला है।

सन्देश सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।

पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।

पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।