चाँद उस देस में निकला कि नहीं
जाने वो आज भी सोया कि नहीं
भीड़ में खोया हुआ बच्चा था
उसने खुद को अभी ढूँढा कि नहीं
मुझको तकमील समझने वाला
अपने मैयार में बदला कि नहीं
गुनगुनाते हुए लम्हों में उसे
ध्यान मेरा कभी आया कि नहीं
बंद कमरे में कभी मेरी तरह
शाम के वक़्त वो रोया कि नहीं