Last modified on 22 अक्टूबर 2013, at 15:48

चाँद का क़र्ज़ / सारा शगुफ़्ता

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सारा शगुफ़्ता }} {{KKCatNazm}} <poem> हमारे आँस...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे आँसुओं की आँखें बनाई गईं
हम ने अपने अपने तलातुम से रस्सा-कशी की
और अपना अपना बैन हुए
सितारों की पुकार आसमान से ज़ियादा ज़मीन सुनती है
मैं ने मौत के बाल खोले
और झूठ के दराज़ हुई
नींद आँखों क कंचे खेलती रही
शाम दोग़्ले-रंग सहती रही
आसमानों पे मेरा चाँद क़र्ज़ है
मैं मौत के हाथ में एक चराग़ हूँ
जनम के पहिए पर मौत की रथ देख रही हूँ
ज़मीनों में मेरा इंसन दफ़्न है
सज्दों से सर उठा लो
मौत मेरी गोद में एक बच्चा छोड़ गई है